भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् । नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥८॥ भगवान् शिव ‘आग’ शास्त्रों में प्रतिपादित कर्म, उपासना और ज्ञान भेद से ‘यामवादि’ ग्रन्थों में प्रतिपादित रहस्य को ज्ञान रूप में दर्शन के अद्वय तत्त्व को प्रतिपादित करने की इच्छा से शक्ति द्वारा किये हुए प्रश्नों के रूप में https://www.youtube.com/shorts/0vLISs2kzMI
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